कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है मै तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है की मोह्हबत एक एहसासों की पवन सी कहानी है कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है यहाँ सब लोग कहते हैं मेरी आखों में आंसू है जो तू समझे तो मोती है जो न समझे तो पानी है समंदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता ये आंसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता मेरी चाहता को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा अभी तक डूबकर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा कभी कोई जो खुलकर हंस लिया दो पल तो हंगामा कोई ख़्वाबों में आकार बस लिया दो पल तो हंगामा मैं उससे दूर था तो शोर था साजिश है , साजिश है उसे बाहों में खुलकर कस लिया दो पल तो हंगामा जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा ये जज्बातों, मुलाकातों हंसी रातों का हंगामा जवानी के क़यामत दौर में यह सोचते हैं सब ये हंगामे की रातें हैं या है रातों का हंगामा कलम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा गिरेबां अपना आंसू में भिगोता हूँ तो हंगामा नही मुझ पर भी जो खुद की खबर वो है जमाने पर मैं हंसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा इबारत से गुनाहों तक की मंजिल में है हंगामा ज़रा-सी पी के आये बस तो महफ़िल में है हंगामा कभी बचपन, जवानी और बुढापे में है हंगामा जेहन में है कभी तो फिर कभी दिल में है हंगामा हुए पैदा तो धरती पर हुआ आबाद हंगामा जवानी को हमारी कर गया बर्बाद हंगामा हमारे भाल पर तकदीर ने ये लिख दिया जैसे हमारे सामने है और हमारे बाद हंगामा |
Monday, November 21, 2011
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है --Kumar Vishwas
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